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रविवार, 6 अगस्त 2023

भवन निर्माण में वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी

 

             वास्तु अनुसार भवन निर्माण 2023


वास्तु अनुसार भवन निर्माण 

                वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तुशास्त्र के अनुसार, भवन के निर्माण में यह महत्वपूर्ण है कि उचित आकार, आरामदायक आकृति और सही दिशा का चयन किया जाए। साथ ही, भवन के अंदर की व्यवस्था, कमरों की स्थानीयकरण, प्रकार, और दरवाजों व खिड़कियों की स्थिति का भी ध्यान देना चाहिए। वास्तुशास्त्र की मदद से भवन की ऊर्जा प्रवृत्ति को भी बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे वातावरण के प्रति सावधानी बढ़ती है।

भवन निर्माण मे वास्तु क्यों जरूरी है
वास्तु भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह निम्नलिखित कारणों के लिए महत्वपूर्ण होता है:


सबसे अच्छे आवास की तरफ: वास्तुशास्त्र भवन की आरामदायकता और प्रक्तिति को सुनिश्चित करने में मदद करता है, जिससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है।
ऊर्जा की सही उपयोग: वास्तुशास्त्र उचित ऊर्जा प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके ऊर्जा के उपयोग को कम करने में मदद करता है और इससे ऊर्जा बचत होती है।
व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता: सही वास्तुशास्त्र के साथ, व्यवसायिक भवन भी व्यवसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाए जा सकते हैं, जिससे कि वित्तीय उपयोगिता भी मिल सकती है।
वातावरण का समर्थन: वास्तुशास्त्र भवन के निर्माण में पर्यावरण के साथ साथ कार्य करता है, जिससे कि पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचे।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: कई लोग वास्तुशास्त्र को धार्मिक और आध्यात्मिक आधारों पर महत्वपूर्ण मानते हैं और उनके अनुसार भवन के निर्माण में वास्तु का पालन करना महत्वपूर्ण होता है।

इन सभी कारणों से, वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी होता है ताकि एक ऊर्जावान, सुरक्षित, और सुखद आवास या व्यवसायिक स्थल बन सके।

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भवन निर्माण वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तु के कुछ प्रमुख सूत्र जिन्हे अपनाकर आप और अपने घर परिवार को स्वस्थ एवं खुशहाल बना सकते हैं:


1.घर की भूमि का ढलान उत्तर व पूर्व में छत की ढलान ईशान में शुभ होती है।


2.घर के भूखंड के उत्तर पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, बोरिंग, कुंवा, तालाब, व बावड़ी शुभ होती है।


3. आयताकार, वृत्ताकार, व गोमुख भूखंड गृह निर्माण के लिए शुभ होता है वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए।


4. सिंह मुखी भूखंड व्यवसायिक भवन हेतु शुभ होता है।
5. भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।


6. भूखंड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिए शुभ होता है।


7. यदि आवासीय परिसर में बेसमेंट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर या पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनाना चाहिए बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट होनी चाहिए तथा वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिए जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।


8. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊंचाई 12 फीट होनी चाहिए किंतु यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिए।


9. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए एवं पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए भवन में दक्षिणी पश्चिमी भाग सबसे ऊंचा व उत्तरी पूर्वी सबसे नीचा होना चाहिए।


10. खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम संख्या में होनी चाहिए।


11. घर के ब्रह्म स्थान या मध्य भाग को खुला साफ तथा हवादार होना चाहिए।


12. चारदीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहिए। क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्त होती है जो शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूर्व से उदय होकर दोपहर में दक्षिण एवं सायं मे पश्चिम की ओर अस्त होता है। पूरब से कम था स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में तथा सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिए। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिए।


13. घर के ईशान कोण में पूजा घर, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेंट बनाना शुभ होता है।


14. घर के पूर्व दिशा में बरामदा, बगीचा, व पूजा घर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जनरेटर, इनवर्टर व मेन  स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य सयन कक्ष, भंडार ग्रह, सीढ़ियां, ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। घर के दक्षिणी पश्चिमी  में शयनकक्ष, भारी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवरहेड, वॉटर टैंक, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाया जा सकते हैं।


15. घर के वायव्य कोण में अतिथि, कुंवारी कन्याओं का सयन कच्छ, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियां अन्य भंडारण व शौचालय शौचालय बनाए जा सकते हैं।


16. घर की उत्तर दिशा में कुआं, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कच्छ, कोषागार व लिविंग रूम बनाए जा सकते हैं।


17. भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा, व गड्ढा अशुभ होते हैं।


18. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए अथवा अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके चाहिए।


19. घर के पूजा स्थान में 7 इंच से बड़ी मूर्तियां स्थापित नहीं करनी चाहिए यदि मूर्ति पहले से है तो उसकी विधि विधान से पूजा करते रहें।


20. घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 सूर्य देव की प्रतिमा, 3 देवी प्रतिमा, 2 गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिए।


21. घर में सभी कार्य पूर्व या उत्तर मुख होकर करना लाभदायक होता है। जैसे- भोजन करना, पढ़ाई करना, धन की तिजोरी का मुख, सोफा, कुर्सी पर बैठने वाले का मुख पूर्व या उत्तर होना चाहिए।


22. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय, रसोई घर का निर्माण नहीं कराना चाहिए। घर में सीढ़ियों की संख्या विषम जैसे 3 5 7 में नहीं होनी चाहिए। एवं घड़ी की दिशा में घुमाव होना चाहिए।


23. भवन के पूर्व की दीवाल पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं बनवाना चाहिए। घर के उत्तर पश्चिम कोने को छोड़कर बाकी तीनों कोणों पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं होनी चाहिए। यह शुभ नहीं होते हैं।


वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह आरामदायकता, ऊर्जा की सही उपयोग, वातावरण संरक्षण, व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता, और धार्मिक महत्व के क्षेत्र में मदद करता है। इससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है और यह व्यापारिक और आध्यात्मिक मानकों को भी पूरा करता है।

रविवार, 11 जून 2023

मुंडन संस्कार की प्रक्रिया इस प्रकार होती है

 

मुंडन संस्कार विधि - हिंदू धर्म




मुंडन संस्कार हिंदू धर्म में एक प्रमुख संस्कार है, जिसमें एक बच्चे के शिर बालों को कटवाया जाता है। यह अक्सर बच्चे की जन्म के कुछ ही समय बाद, सातवें या एकवें महीने में  या फिर तीसरे, पांचवें वर्ष में किया जाता है। मुंडन संस्कार के द्वारा बच्चे के प्रथम शिर के बालों की निकाला जाता है और इसे एक धार्मिक और सामाजिक उत्सव के रूप में मान्यता प्राप्त है।



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मुंडन संस्कार की प्रक्रिया इस प्रकार होती है:

संस्कार की तैयारी: मुंडन संस्कार के लिए संबंधित सामग्री की तैयारी की जाती है। इसमें एक नागली या केश कतने के ताले, नये कपड़े, नींव या दूध, गंध, आरती की सामग्री, आदि शामिल हो सकती हैं।

स्नान: संस्कार के दिन बच्चे को स्नान कराया जाता है। यह उसके पूर्व आवश्यकतानुसार गंगा के स्नान के रूप में हो सकता है।

पंडित को बुलाना: एक पंडित को बुलाकर मुंडन संस्कार के लिए उनकी आवश्यकता बताई जाती है।

अग्नि पूजा: मुंडन संस्कार के दौरान, एक अग्नि पूजा की जाती है। एक चौक या मंडप में, पंडित द्वारा एक अग्नि कुंड स्थापित किया जाता है और उसमें आग जलाई जाती है। इस अग्नि को देवी-देवताओं के आशीर्वाद के रूप में मान्यता प्राप्त होता है।



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केश कटाई: इसके बाद, बच्चे के शिर के बालों की कटाई की जाती है। पंडित या विशेषज्ञ बाल कटवाने के लिए चुने जाते हैं। उन्हें धार्मिक मंत्रों और वेद मन्त्रों का उच्चारण करते हुए बालों को कटवाया जाता है।

नामकरण: बालों की कटाई के बाद, बच्चे का नामकरण किया जाता है। पंडित द्वारा विशेष धार्मिक विधि के अनुसार, बच्चे के नामकरण का आयोजन किया जाता है। विभिन्न परम्पराओं और क्षेत्रों में इस प्रक्रिया के बाद एक धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया जा सकता है।

प्रसाद वितरण: संस्कार के समाप्त होने के बाद, भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है।

दान: मुंडन संस्कार के दौरान, धार्मिक कार्यों की महत्वता को समझाते हुए, परिवार को दान किया जाता है। यह दान पांच तत्वों (पानी, धान्य, गौवंश, सोना और वस्त्र) में से किसी एक का हो सकता है। यह धार्मिक कर्तव्य का प्रतीक होता है और समाज के गरीबों की सहायता के लिए किया जाता है।

संस्कारिक आयोजन: मुंडन संस्कार के बाद, परिवार द्वारा एक संस्कारिक आयोजन आयोजित किया जा सकता है। इसमें आपसी मिलन, परिवार और मित्रों के साथ भोजन, प्रशंसापत्र वितरण, धार्मिक भजन और संगीत शामिल हो सकते हैं। इसके माध्यम से परिवार की खुशी और धार्मिक उत्साह का आनंद लिया जा सकता है।

समाजिक प्रभाव: मुंडन संस्कार एक समाजिक आयोजन भी होता है जहां परिवार के सदस्यों को आमंत्रित किया जाता है। इसके माध्यम से समाज के लोगों के बीच सम्बन्ध बनाए रखे जाते हैं और सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। इसका प्रभाव परिवार के आदर्शों, संस्कृति और परंपराओं को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण होता है।



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आध्यात्मिक महत्व: मुंडन संस्कार हिंदू आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह बच्चे को धार्मिक विचारधारा, मानवीय मूल्यों और आध्यात्मिक गुणों के प्रतीक के रूप में प्रदान करता है। इसके द्वारा बच्चे को परंपरागत धर्म के मूल सिद्धांतों और अपने धार्मिक आदर्शों की पहचान होती है।


शौर्य और साहस: मुंडन संस्कार एक प्रशंसनीय संकल्प और साहस का प्रतीक भी है। बच्चे के बालों की कटाई इसे एक वीरतापूर्ण कार्य बना देती है और बच्चे में साहस, स्वाधीनता और शौर्य की भावना को विकसित करती है।


नई आरंभ: मुंडन संस्कार बच्चे के जीवन में एक नई आरंभ का संकेत होता है। यह उसकी पहली कटाई होती है और उसे बचपन से वयस्कता की ओर ले जाती है। यह संस्कार उसकी नई पहचान का संकेत होता है और उसे समाज के सदस्य के रूप में स्वीकार करता है। इसके साथ ही यह उसे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दुनिया में अधिक सम्मान के साथ स्वागत करता है।


शुभ आशीर्वाद: मुंडन संस्कार एक प्रमुख धार्मिक संस्कार होने के साथ ही एक शुभ अवसर भी है। इस अवसर पर परिवार के बड़े सदस्य और पंडित द्वारा शुभकामनाएं दी जाती हैं और बच्चे के भविष्य की सुरक्षा, स्वास्थ्य, समृद्धि और सफलता की कामना की जाती है। यह आशीर्वाद बच्चे को उत्साह और सहायता प्रदान करता है जो उसे अपने जीवन की यात्रा में आगे बढ़ने में मदद करता है।



यह हैं मुंडन संस्कार के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और चरण। ध्यान देने योग्य है कि यह आमतौर पर धार्मिक पद्धति है और विभिन्न संप्रदायों और क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में प्राथमिकता दी जाती है। इसलिए, इसे आपके परिवार के धार्मिक आदर्शों, सम्प्रदायों और आपके धार्मिक गुरुओं के सलाह के अनुसार आयोजित करना चाहिए। सर्वोपरि, आपके धार्मिक गुरु, पंडित या आपके परिवार के सदस्यों की मार्गदर्शन के अनुसार मुंडन संस्कार का आयोजन करना चाहिए।

यदि आपको विधि या प्रक्रिया के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए, तो उत्तम होगा कि आप अपने स्थानीय पंडित या धार्मिक   केंद्र से संपर्क करें। वे आपको सही और संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे और आपको उचित रूप से मुंडन संस्कार का आयोजन करने में मदद करेंगे।

शनिवार, 20 मई 2023

घर और परिवार

 


घर और परिवार



घर मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह स्थान न केवल हमारी आवास की सुरक्षा और सुरक्षा का निर्माण करता है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और परिवारिक संयोजना का जड़ भी होता है। घर हमारे लिए एक स्थान होता है जहां हम अपने को अंतरंग महसूस कर सकते हैं, आराम कर सकते हैं और सुरक्षित महसूस कर सकते हैं।
यहां कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं जो घर के माहत्व को समझाते हैं:
घर और सुरक्षा: घर हमें बाहरी जगहों के खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है। यह हमें बाहरी मानसिक और शारीरिक आपातकालीन स्थितियों से बचाता है और हमें आरामदायक और सुरक्षित महसूस कराता है।
परिवार केंद्रितता: घर परिवार के लिए एक केंद्रीय मंच होता है। यहां परिवार के सदस्य साथ में खुशी, दुःख, समस्याओं और समाधानों को साझा करते हैं। घर वातावरण को आनंददायक और अनुकूलित बनाने का भी कार्य करता है।
संस्कृति और परंपरा: घर हमारी संस्कृति और परंपराओं क
परिपूर्णता के रूप में मान्यता है। यहां हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक आयामों को जीने का स्थान होता है। धार्मिक और पारंपरिक आयोजनों, पूजाओं और उत्सवों को घर ही एक स्थान प्रदान करता है जहां हम अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति कर सकते हैं।
विकास और समृद्धि: घर व्यक्ति के विकास और समृद्धि का माध्यम होता है। यह एक सुरक्षित और आदर्श पर्यावरण प्रदान करके संतोष और समृद्धि की भावना पैदा करता है। घर में स्वच्छता, सुविधाएं और आवासीय सुख-शांति की व्यवस्था से हमारी उच्चतम संभावनाएं प्राप्त होती हैं।
संवाद और सम्बन्ध: घर एक संवाद केंद्र होता है जहां हम सम्बंधों को स्थापित करते हैं और उन्हें मजबूत बनाते हैं। यहां हम सभी सदस्यों के बीच संवाद करके अपनी बातें व्यक्त करते हैं, दिल की बातें कहते हैं और एक-दूसरे की समझ पाते हैं।



घर हमारी पहचान होता है और हमें अपनी उपस्थिति का एहसास कराता है। यह हमारी आत्मीयता का केंद्र होता है और हमें एक सामरिक और स्थिर अभाव में सुरक्षित बनाता है।
घर एक स्थान है जहां हम अपनी स्थायित्विकता का अनुभव करते हैं। यह हमारे सपनों, लक्ष्यों और आशाओं को समर्पित करने का स्थान होता है। यहां हम अपने कार्यों को निर्धारित करते हैं, अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करते हैं और अपने परिवार को प्रेम और समर्पण के साथ पालते हैं।
घर संतुष्टि, प्रेम, सुख, शांति और आनंद का स्रोत होता है। यह हमें एक साथी की तरह समझता है, हमें संगठित और अनुकूलित रखता है और हमारे मानसिक और आत्मिक स्थिति को स्थिर रखने में मदद करता है।
इसलिए, घर का माहत्व न सिर्फ हमारे व्यक्तिगत जीवन में है, बल्कि यह समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। एक समृद्ध और समरस्त परिवार की नींव घर में ही बनती है और एक उत्कृष्ट समाज का निर
घर को सुद्ध कैसे रखें:
घर को सुद्ध और शांत रखने के लिए निम्नलिखित उपायों का पालन किया जा सकता है:
स्वच्छता बनाए रखें: घर की स्वच्छता को महत्व दें। नियमित रूप से सभी कमरों को सफाई करें, जैसे कि सड़क, बाथरूम, रसोई आदि। प्रकाश का ध्यान रखें, जल्दी से विचरण करें और अपने चीजों को सुसज्जित रखें।
प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग करें: अपने घर में प्राकृतिक ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा दें। सौर ऊर्जा, वायुमंडलीय तापमान नियंत्रण, पौधों का रखरखाव और उपयोग आदि के माध्यम से आप अपने घर को स्वच्छ और प्राकृतिक बना सकते हैं।
वास्तु के नियमों का पालन करें: वास्तु शास्त्र के माध्यम से अपने घर की स्थिति को सुधारें। सही रंग, समर्थन की स्थिति, वास्तुदोषों को ठीक करने के लिए योजनाबद्ध करें।
प्रकृति के साथ संबंध बनाए रखें: पौधों, पेड़-पौधों, फूलों और गमलों को अपने घर में जगह दें और घर में प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लें साथ ही यह प्राकृतिक वातावरण को शुद्ध करने में मदद मिलेगी। आप छोटे पौधों को अपने आंतरिक और बाहरी आंगन में लगा सकते हैं, जल बोतलों और हरे पौधों का उपयोग करके वातावरण को आंदोलित कर सकते हैं।
स्वास्थ्य और मनोदशा की देखभाल करें: घर की सुदृढ़ और स्वास्थ्यपूर्ण मनोदशा के लिए ध्यान दें। नियमित रूप से योग, ध्यान, प्राणायाम और व्यायाम करें। घर में शांति और मनोदशा के लिए मौन अवधारणा, ध्यान मंडल और स्पष्टिक चित्रों का उपयोग करें।
संगठन और व्यवस्था बनाए रखें: एक सुचारू रूप से व्यवस्थित और संगठित घर मन की शांति को बढ़ावा देता है। अपने घर को आदेशबद्ध रखें, सामग्री को सुसज्जित करें, आवश्यक वस्तुओं की सही संख्या रखें और अपनी चीजों का ठीक से प्रबंध करें।



घर और परिवार:
घर और परिवार हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। यह हमारी आत्मीयता, सुरक्षा और पहचान का केंद्र होते हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को ध्यान में रखकर घर और परिवार के बारे में और विस्तार से चर्चा करते हैं:
समरसता और संगठन: एक समरस्त परिवार घर की मूलभूत गुणवत्ता है। परिवार के सदस्यों के बीच समरसता, सहयोग और संवाद को स्थापित रखना महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए, नियमित परिवारिक बैठकों, साझा कार्यों और उत्सवों को आयोजित कर संगठन को मजबूत बनाए रखना चाहिए।
प्रेम और सम्मान: परिवार में प्रेम और सम्मान का वातावरण स्थापित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना, सहानुभूति और संवेदनशीलता दिखाना, परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना और उनकी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करना यहां महत्वपूर्ण है।
घर और परिवार एक-दूसरे के लिए सहारा और समर्थन का स्रोत होते हैं। यहां अधिक आवश्यक तत्वों को ध्यान में रखकर घर और परिवार के महत्व की चर्चा की जा सकती है:
सामरिकता और टीमवर्क: एक सामरिक परिवार में, सदस्यों के बीच साझा लक्ष्यों और मंचों का समर्थन होता है। परिवार के सदस्यों को साझा रुचियों, कार्यक्रमों और उत्सवों में भाग लेने का मौका देना चाहिए ताकि उनकी टीमवर्क क्षमता और साझेदारी मजबूत हो सके।
आपसी समझ और संवाद: अच्छी संवादबद्धता और आपसी समझ परिवार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। परिवार के सदस्यों के बीच सच्ची मान्यता, संवेदनशीलता और संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। सभी विचारों, धारणाओं और मांगों का समय-समय पर साझा करना और समय-समय पर परिवारिक सभाओं का आयोजन करना आपसी समझ को बढ़ावा देगा।
समय की महत्वपूर्णता: परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना और समय की मान्यता करना आवश्यक है।

घर पर क्या ना करें:
घर में रहते हुए निम्नलिखित चीजें न करने का प्रयास करें:
स्वच्छता की अवहेलना न करें: स्वच्छता को ध्यान में रखें और अपने घर को साफ-सुथरा रखें। अपनी वस्त्रों, बर्तनों, रसोईघर और सामग्री को नियमित रूप से साफ करें।
विनाशकारी पदार्थों का उपयोग न करें: घर में विनाशकारी औषधियों, केमिकल्स, जहरीले पदार्थों या अनुपयोगी सामग्री का उपयोग न करें। इससे आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण को हानि पहुंच सकती है।
अनुचित व्यय का प्रयास करें: अपने घर में उपयोगिता के बिना सामग्री का अनावश्यक खर्च न करें। ऊबर-ऊबर भरे घर की जगह पर अपार्टमेंट या घर के बाहर में एक गार्डन में पौधे उगाने का प्रयास करें।
वातावरण की हानि न करें: पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अपने घर में प्लास्टिक का उपयोग कम करें। प्लास्टिक बैग की बजाय पारंपरिक जूट या रीवाइवेबल शॉपिंग बैग का उपयोग करें।


एक स्वस्थ, समृद्ध और सुखी परिवार बनाने के लिए घर में सदुद्धता और स्वच्छता का पालन करना महत्वपूर्ण है। हमें विनाशकारी पदार्थों का उपयोग कम करना चाहिए और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सावधान रहना चाहिए। इसके साथ ही, हमें परिवार के सदस्यों के बीच समरसता, प्रेम और सम्मान का माहौल बनाना चाहिए। एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना, सहानुभूति और संवेदनशीलता दिखाना आवश्यक है। विचारों, धारणाओं और मांगों को साझा करके और समय बिताकर हम अपने परिवार के बंधन को मजबूत कर सकते हैं। इस प्रकार, संगठन, सहयोग, समरसता और प्यार के साथ घर और परिवार खुशहाल और सुखी रह सकते हैं।


गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

भारतीय ग्रामीण जीवन

                    भारतीय ग्रामीण जीवन


भारतीय ग्रामीण जीवन शैली अनेक विभिन्न संस्कृतियों, जातियों, धर्मों और क्षेत्रों से प्रभावित होती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन बहुत ही आधुनिकता से दूर होता है और वहां के लोग अपनी परंपरागत जीवन शैली को अपनाते हुए रहते हैं।


गांवों में समाज का संगठन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है। गांवों में सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों का महत्व बहुत अधिक होता है। लोग ज्यादातर परंपरागत तरीकों से कृषि, पशुपालन और फिशरी जैसी गतिविधियों से अपनी जीविका आजमाते हैं। गांवों में लोग आम तौर पर खेतों में काम करते हुए और शाम को अपने घरों में बैठते हुए बिताते हैं।
भारत के ग्रामीण इलाकों में लोग अपने परिवारों के साथ रहते हैं और इसलिए जगह कम होने के कारण घरों का आकार छोटा होता है। गांवों में घरों में अधिकतर परंपरागत तरीके से बने होते हैं जो इस्तेमाल करने में सस्ते और सुलभ होते हैं।
भारतीय ग्रामीण जीवन शैली में लोगों की जीवन शैली बहुत सरल और संयमित होती है। लोग अपने घरों में सादगी और संयम के साथ रहते हैं और अपनी जीवन शैली को बनाए रखने के लिए परंपरागत तरीकों का पालन करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। लोग अपने संगठनों और गांव समूहों के साथ मिलकर भगवान की पूजा करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इसके अलावा, जीवन में खुशहाली और समृद्धि के लिए कुछ विशेष दिनों को भी मनाया जाता है।
भारतीय ग्रामीण जीवन शैली में खाने का स्वाद भी बहुत विशेष होता है। लोग खाने में अपने खेतों से उत्पादित स्थानीय खाद्य पदार्थों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं। खाद्य पदार्थ बनाने के लिए स्थानीय मसालों का उपयोग किया जाता है और इससे खाने का स्वाद और आरोग्य दोनों ही सुन्दर होता है।
आज हम इस लेख मे उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश एवम रहन शहन पर चर्चा करेगें।


ग्रामीण रहन शहन 
ग्रामीण रहन-सहन अपनी विशेषताओं और चुनौतियों से भरा होता है। यहां कुछ मुख्य बिंदु हैं:
घर: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग धरती के बने घरों में रहते हैं। घरों का निर्माण जंगली लकड़ी, बांस या मिट्टी के बने होते हैं। घर के आकार और बनाव भी उस स्थान के स्थानीय वातावरण और स्थानीय परंपराओं के अनुसार होते हैं।
खानपान: ग्रामीण खानपान स्थानीय खाद्य पदार्थों पर आधारित होता है। दूध, दही, मक्के की रोटी, दाल, सब्जियां और फल उन्हें स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।
खेती: ग्रामीण क्षेत्रों में खेती सबसे अधिक व्यापक उद्योग होता है। खेती के लिए विभिन्न फसलों की खेती की जाती है जैसे- धान, गेंहूं, बाजरा, जौ, मक्का आदि।
परंपरागत संस्कृति: ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत संस्कृति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यहां कुछ विशिष्ट संस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जैसे कि त्योहार, संगीत, नृत्य, मेले आदि।
वस्त्र: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग वेशभूषा में भी अपनी परंपरागत विशेषताओं को संजोते हुए हैं। औरतें घरेलू रूप से स्वयं अपने कपड़े बुनती हैं जो उनकी परंपरागत स्थानीय भाषा में "कड़ई" कहलाते हैं। पुरुष धोती और कुर्ता पहनते हैं।
परिवार: ग्रामीण जीवन के मूल तत्वों में से एक परिवार है। ग्रामीण परिवार सदा एकता के साथ रहता है और संबंधों को महत्व देता है। परिवार आपसी सहयोग, संवेदनशीलता और समरसता के लिए जाना जाता है।
गांव के सामाजिक जीवन: गांव के लोग सामाजिक रूप से आपस में जुड़े रहते हैं। वे संगठित समूहों, समाज और समितियों में शामिल होते हैं जो उन्हें सम्मान, संवेदनशीलता और सहयोग प्रदान करते हैं।
ग्रामीण आर्थिक जीवन: ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक जीवन अत्यंत मुश्किल होता है। कुछ लोग अपने खेतों या व्यापार में काम करते हैं। अन्य लोग अपने अस्पतालों, स्कूलों और शहरों में रोजगार् करते है।
ग्रामीण वातावरण
ग्रामीण वातावरण एक सामान्यत: शांत और प्राकृतिक होता है। लोग यहां शांतिपूर्ण और स्वस्थ वातावरण में रहते हैं जो सामान्यतः उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। ग्रामीण क्षेत्र देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में होते हैं, जहां आबोहवा शुष्क और धूमिल होता है।
यहां वातावरण के कुछ मुख्य तत्व हैं:
जलवायु: ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान एकमात्र जलवायु के अनुसार होता है। इसलिए, यहां सर्दियों में ठंडा और गर्मियों में गर्म होता है।
मौसम: ग्रामीण क्षेत्रों में मौसम सामान्यतः स्थिर होता है। यहां बारिश की अधिकता मानसून के दौरान होती है।
भूमि: ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यहां ज्यादातर लोग खेती और पशुपालन से जुड़े होते हैं।
वनस्पति: ग्रामीण क्षेत्रों में वनस्पति की अधिकता होती है। यहां जंगलों में घास, पेड़ और फसलें होती हैं जो लोगों को खाने के लिए काम आती है।
ग्रामीण खान पान
ग्रामीण खान पान कुछ खास होता है और यह उनके जीवन शैली और स्थान के आधार पर विभिन्न होता है। ग्रामीण इलाकों में खाद्य व्यवस्था अलग होती है और यहां की स्थानीय खाद्य पदार्थ खास रुचि के साथ खाए जाते हैं।
ग्रामीण खाद्य व्यवस्था मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के आधार पर होती है। अधिकतर लोग अपने खेतों में उगाई गई फसलें, दालें, अनाज, सब्जियां, फल और तेल के बीज बोते हैं। इसके अलावा, पशुपालन से जुड़े लोग गाय, भेड़ और अन्य पालतू जानवरों के दूध, दही, मक्खन और मांस का उपयोग करते हैं।
ग्रामीण खाद्य व्यवस्था में खाने की परंपराएँ और भोजन बनाने की विधियाँ भी विभिन्न होती हैं। उत्तर भारत में मक्के के रोटी, दाल, सब्जियां और दही का सेवन अधिक होता है। 


ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था
भारत में ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था विभिन्न चुनौतियों का सामना करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए उपलब्ध संसाधनों की कमी होती है, जो शिक्षा के आधार तत्वों को प्रभावित करती हैं।
ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी प्राथमिक विद्यालय होते हैं, जो कम संसाधनों वाले होते हैं। शिक्षकों की कमी, व्यवस्थित शिक्षा सामग्री की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी इन स्कूलों में उपलब्ध संसाधनों की कमी के कारण इस क्षेत्र में शिक्षा के स्तर में कमी आती है।
इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत शिक्षा की अन्य विधाएं होती हैं, जैसे जनसाधारण के लिए अभियानों, संगठनों, ग्राम समूहों और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित शिक्षा अभियान।
सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए नए योजनाएं लागू की जा रही हैं।

रोजगार एवम ब्यवसाय
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और व्यवसाय के स्रोत विभिन्न होते हैं। कुछ लोग खेती, मछली पालन, चारा पालन, फल और सब्जियों की खेती, गाय-भैंसों की दुग्ध उत्पादन, इत्यादि करते हैं। दूसरे लोग छोटे व्यवसाय जैसे की दुकान, प्रतिष्ठान, ठेकेदारी, बढ़ई-कढ़ाई, इत्यादि करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साथ-साथ उद्यमिता के अवसर भी होते हैं। स्वयं रोजगार के लिए लोग जैविक खेती, पशुपालन, अपने घर में उत्पादित चीजों की बिक्री, आदि शुरू कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं।


लेकिन अब ग्रामीण ब्यवस्था आधुनिक बन रही है और इसमें बड़ी बदलाव हो रहे हैं। नए तकनीकी उपकरणों और स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता का स्तर बढ़ाया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं पशुपालन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उद्योग विकास के अवसर हैं। उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज कल विभिन्न प्रकार के उद्योग की स्थापना हो रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

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मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

भारतीय पर्व एवं त्योहार

 

भारतीय पर्व समाज की विविधता को दर्शाते हुए समाज में भाईचारे और सामंजस्य का माहौल बनाते हैं।
भारतीय पर्व वर्ष के अलग-अलग समयों पर मनाए जाने वाले पर्वों का समूह है। भारत के विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के अनुसार इन पर्वों का महत्व विभिन्न होता है। कुछ् पर्वों के प्रकार निम्नलिखित हैं:-
1: होली
2: दिवाली
3: दुर्गा पूजा
4: रक्षा बंधन
5: हनुमान जयंती
6: जन्माष्टमी
7: गणेश चतुर्दशी
8: गुरु पूर्णिमा
9: मकर संक्रांति
10: लोहड़ी
11: बैशाखी
12: पोंगल
13: ओड़म



होली
होली भारत का एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है, जो फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है, लेकिन यह देश के अन्य हिस्सों में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
होली का उत्सव रंग-बिरंगे रंगों, गुजियों, मिठाईयों, पिचकारियों और गुलाल के उपयोग से मनाया जाता है। लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं और एक दूसरे के साथ नाचते और खुश होते हैं। होली का उत्सव खुशियों और मिलन का एक मौका होता है जिसे सभी लोग धूमधाम से मनाते हैं।
दिवाली
दिवाली भारत का एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है, जो हर साल अक्टूबर या नवंबर महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार अधिकतर हिंदुओं के लिए बड़ा और महत्वपूर्ण होता है।
दिवाली के उत्सव को लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। इस त्योहार में लोग घरों को सजाते हैं, दीपक जलाते हैं, फूलों और दीपकों से दिए बनाते हैं, रंगोली बनाते हैं और मिठाई बनाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं ताकि घर शुभ बना रहे।
दिवाली के दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों से मिलते हैं और एक दूसरे को उपहार देते हैं। लोग भी आपस में खुशियों का एक साथ शेयर करते हैं और एक दूसरे के घर जाकर खाने के लिए बुलाते हैं। दिवाली के उत्सव का मूल उद्देश्य अंधकार को दूर करना और प्रकाश को आमंत्रित करना होता है।
दुर्गा पूजा
दुर्गा पूजा भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो अक्टूबर या नवंबर महीने में दशहरा के दिन से पहले आते हैं। यह उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में भी मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा के दौरान, लोग माँ दुर्गा की पूजा करते हैं जो शक्ति की देवी के रूप में जानी जाती हैं। इस उत्सव के दौरान, मंदिरों और घरों में उन्हें पूजा जाता है और भोग चढ़ाया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान, लोग नवरात्रि के नौ दिनों तक व्रत रखते हैं और माँ दुर्गा की कथा सुनते हैं।
दुर्गा पूजा के अंतिम दिन को विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन, लोग धूमधाम से शाम के समय रामलीला में जाते हैं और रावण वध का प्रदर्शन देखते हैं। यह दिन भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है।
रक्षा बंधन
रक्षा बंधन एक हिंदू त्योहार है जो भारत में हर साल अगस्त के महीने में मनाया जाता है। यह त्योहार भाई और बहन के प्रेम और सम्मान का प्रतीक होता है। इस दिन, बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं और उन्हें शुभकामनाएं देती हैं।
राखी एक धागा होता है जो बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती हैं। इस राखी में समर्थन, सुरक्षा और प्रेम की भावना होती है। इस दिन, भाई भी अपनी बहन को उपहार देते हैं और उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।
रक्षा बंधन का महत्व बहुत अधिक होता है, इसे राष्ट्रीय त्योहार भी माना जाता है। यह त्योहार भाई और बहन के बंधन को मजबूत करता है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सम्मान का महसूस कराता है।
हनुमान जयंती
हनुमान जयंती हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान हनुमान के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जयंती को लोग भजन, कीर्तन और पूजा के साथ मनाते हैं।
हनुमान जी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता होते हैं जिन्हें बल, साहस, ताकत और विवेक का प्रतीक माना जाता है। हनुमान जी के जन्म दिवस के दिन उनके भक्त उनकी पूजा करते हैं और उन्हें प्रसाद भोग के रूप में अर्पित करते हैं।
हनुमान जयंती के दिन लोग बड़ी धूम-धाम से इसे मनाते हैं। कुछ लोग अपने घर में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और पूजा करते हैं। दूसरों के लिए, यह दिन बाहर जाकर मंदिरों में जाकर पूजा करने का एक अवसर होता है। हनुमान जयंती भक्तों के लिए एक बड़ा त्योहार होता है जो उन्हें अपने धर्म और आस्था के प्रति आदर और सम्मान के साथ जोड़ता है।
जन्माष्टमी
जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी को लोग धार्मिक उत्साह के साथ मनाते हैं।
जन्माष्टमी का महत्व भगवान कृष्ण के जन्म दिवस मनाने से होता है। इस दिन लोग उनकी पूजा करते हैं और उन्हें भोग के रूप में फल, मिठाई, दूध आदि चीजें अर्पित करते हैं। इसके अलावा, लोग कृष्ण भजन, कथा वाचन और कीर्तन करते हैं।
जन्माष्टमी का उत्साह भारत के विभिन्न हिस्सों में भी देखा जा सकता है। वृंदावन और मथुरा, जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वहां लोग भगवान कृष्ण की झांकी निकालते हैं और उन्हें नगद धनराशि देते हैं। इसके अलावा, घरों में भी लोग जन्माष्टमी को खास तरीके से मनाते हैं।


गणेश चतुर्दशी
गणेश चतुर्दशी एक हिंदू त्योहार है जो भारत में मनाया जाता है। इस त्योहार को भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं।
गणेश चतुर्दशी के दिन लोग उत्साह से इस त्योहार को मनाते हैं। इस दिन लोग गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करते हैं और उन्हें विभिन्न प्रकार के फल, मिठाई, धूप, दीप आदि से भोग अर्पित करते हैं। विभिन्न पूजा विधियों के अनुसार मंत्रों और भजनों का पाठ किया जाता है।
इस त्योहार को अलग-अलग रूपों में भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्दशी को गणेशोत्सव के नाम से मनाया जाता है जो 10 दिन तक चलता है। इसके अलावा, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में भी गणेश चतुर्दशी को विभिन्न् राज्यों मे मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार गुरु शिष्य परम्परा के महत्व को स्मरण कराता है और शिष्य अपने गुरु को भक्ति और सम्मान से याद करते हैं।
गुरु पूर्णिमा को विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। इस दिन लोग गुरु की पूजा करते हैं और उन्हें भेंट देते हैं। शिष्य गुरु के चरणों में ध्यान लगाते हुए उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित करते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं और अपने जीवन में सफलता की कामना करते हैं।
यह त्योहार संस्कृति और शिक्षा का भी महत्व है। इस दिन लोग अपने गुरु से विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हैं और उनसे ज्ञान और अनुभव लेते हैं। गुरु पूर्णिमा को वैदिक संस्कृति में बहुत महत्व दिया जाता है और इस दिन आदर्श गुरु शिष्य संबंध का भी जिक्र किया जाता है।
मकर संक्रांति
मकर संक्रांति भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो सूर्य के उत्तरायण होने का समय बताता है। यह त्योहार जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह या फरवरी महीने के पहले सप्ताह में मनाया जाता है।
मकर संक्रांति का अर्थ होता है 'मकर राशि में संक्रांति'। यह त्योहार सूर्य के उत्तरायण के समय होता है, जिसके दौरान सूर्य उत्तरी गोलार्ध में आता है। यह दिन सूर्य के उत्तरायण की शुरुआत का संकेत देता है जिसे देश भर में मनाया जाता है।
इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाने-पीने का आनंद लेते हैं और अलग-अलग रूपों में इसे मनाते हैं। इस दिन कई राज्यों में खिचड़ी, टिल गुड़, ऊरद दाल, लड्डू, पिठे आदि का भोजन किया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन लोग सूर्य पूजा भी करते हैं जिसमें वे सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं। इस दिन भीषण स्नान भी किया जाता है जो लोगों को नयी ऊर्जा और शक्ति प्रदान् करता है।
लोहड़ी
लोहड़ी एक भारतीय त्योहार है जो उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार मकर संक्रांति के एक दिन पहले, जनवरी महीने के आखिरी सप्ताह या फरवरी महीने के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मस्ती करते हैं।
लोहड़ी के दिन लोग अपने घर के सामने एक बड़े बोनफायर को जलाते हैं और उसके आसपास नृत्य और गाने का आनंद लेते हैं। लोग मक्की के रोटी, सरसों का साग, गुड़, मूंगफली, और गुड़ वाले चावल खाते हैं।
लोहड़ी के अलावा इस दिन को पौष पुत्रदा नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार लोगों के लिए बड़ी खुशी का अवसर होता है जब वे सब मिलकर मस्ती करते हैं और अपनी प्रीति और आनंद का प्रकटीकरण करते हैं।
बैशाखी
बैशाखी एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो उत्तर भारत के पंजाब राज्य और पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस त्योहार को बैसाखी या वैसाखी नाम से भी जाना जाता है, जो नए साल का आगमन सूचित करता है। इस दिन लोग खेती के लिए आशीर्वाद मांगते हैं, उत्सव मनाते हैं और एक दूसरे के साथ भोजन करते हैं।
बैशाखी त्योहार के दिन सैकड़ों लोग खेतों में गेहूं कटते हैं और उसके बाद भोजन, नृत्य, गाने और खेल-कूद का आनंद लेते हैं। इस त्योहार के अवसर पर लोग पंजाबी गानों पर नृत्य करते हैं और बांगड़े बजाते हुए उत्सव मनाते हैं। इस दिन खासकर चना-भटूरे, परांठे, सरसों का साग और मक्की की रोटियां बनाई जाती हैं।
इस त्योहार का महत्व वहाँ की खेती से जुड़ा होता है, जब लोग अपनी फसल की पूजा करते हैं और उसकी आराधना करते 
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पोंगल
पोंगल दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है, जो तमिल नाडु राज्य के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार दक्षिण भारत के स्थानों में गर्मियों के मौसम के बाद आने वाली शीतकालीन फसलों के साथ संबंधित होता है। यह त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है।
पोंगल का त्योहार मुख्य रूप से राशि बदलने के बाद शुरू होता है, जब दक्षिण भारत में शीतल हवाओं का मौसम आता है। इस त्योहार के दौरान, लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और पूजा के लिए खाद्य सामग्री तैयार करते हैं।
इस त्योहार के दौरान, लोग अपनी पूजा घर में गणेश जी की पूजा करते हैं। उन्हें धान की रोटियां, सांभर, रसम, इडली, डोसा और वेजिटेबल्स जैसे विभिन्न व्यंजनों के साथ परोसा जाता है। इस त्योहार के दौरान, दक्षिण भारत के लोग मानते हैं कि धान को पकाने के दौरान प्रकृति देवताओं को आह्वान करते है।
ओड़म
ओड़िशा राज्य के लोग ओड़िशा त्योहार के रूप में जाना जाने वाला ओड़िशा का एक प्रमुख त्योहार है। इस त्योहार को देवी दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है। ओड़िशा के लोग इस त्योहार के दौरान महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली को भी पूजते हैं।
ओड़िशा के लोग इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। इस त्योहार के दौरान, लोग विभिन्न प्रकार के परम्परागत व्यंजन बनाते हैं जैसे चकली, गांधा थिआ, पोडा और खीर। इन व्यंजनों को पूजा के बाद चढ़ाया जाता है। इस त्योहार के दौरान, लोग उत्साहपूर्वक नृत्य और संगीत का आनंद लेते हुए मनाते हैं।
इस त्योहार के दौरान, ओड़िशा के मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगती है। दुर्गा पूजा के दौरान, मंदिरों में खाने के लिए बहुत से भोजनालय स्थापित किए जाते हैं जो भोजन के लिए मुफ्त होते है।
भारतीय पर्व का ऐतिहासिक महत्व:
भारत में मनाए जाने वाले पर्वों का ऐतिहासिक महत्व बहुत ऊँचा है। इन पर्वों का महत्व भारतीय संस्कृति और इतिहास से जुड़ा हुआ है। इन पर्वों में दिखाए जाने वाले रीति-रिवाज, उपहार और विभिन्न प्रकार के खाने-पीने के पदार्थों का अपना अनोखा महत्व होता है।
ये पर्व  ये पर्व लोगों को उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जोड़ते हैं और समाज में एकता का महत्व बताते हैं।
इन पर्वों के जश्न और उत्सव भारत के इतिहास का हिस्सा होते हैं। इन पर्वों में राष्ट्रीय और सामाजिक एकता के संदेश दिए जाते हैं। इन पर्वों के महत्वपूर्ण इतिहासी घटनाओं से जुड़ी कहानियां और विविध परंपराएं भी समाज में आगे बढ़ते हुए विरासत के रूप में संजोए जाते हैं।
इस प्रकार, भारत में मनाए जाने वाले पर्वों का ऐतिहासिक महत्व उस दौर में संजोए जाने वाले सभी भारतीय पर्वों का ऐतिहासिक महत्व भारत के सामाजिक और धार्मिक इतिहास से जुड़ा होता है। इन पर्वों को मनाने के पीछे कई इतिहासी कारण होते हैं। इन पर्वों का मनाना समाज के लिए अहम होता है क्योंकि ये समाज की एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देते हैं।

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