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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

भारतीय ग्रामीण जीवन

                    भारतीय ग्रामीण जीवन


भारतीय ग्रामीण जीवन शैली अनेक विभिन्न संस्कृतियों, जातियों, धर्मों और क्षेत्रों से प्रभावित होती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन बहुत ही आधुनिकता से दूर होता है और वहां के लोग अपनी परंपरागत जीवन शैली को अपनाते हुए रहते हैं।


गांवों में समाज का संगठन ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है। गांवों में सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों का महत्व बहुत अधिक होता है। लोग ज्यादातर परंपरागत तरीकों से कृषि, पशुपालन और फिशरी जैसी गतिविधियों से अपनी जीविका आजमाते हैं। गांवों में लोग आम तौर पर खेतों में काम करते हुए और शाम को अपने घरों में बैठते हुए बिताते हैं।
भारत के ग्रामीण इलाकों में लोग अपने परिवारों के साथ रहते हैं और इसलिए जगह कम होने के कारण घरों का आकार छोटा होता है। गांवों में घरों में अधिकतर परंपरागत तरीके से बने होते हैं जो इस्तेमाल करने में सस्ते और सुलभ होते हैं।
भारतीय ग्रामीण जीवन शैली में लोगों की जीवन शैली बहुत सरल और संयमित होती है। लोग अपने घरों में सादगी और संयम के साथ रहते हैं और अपनी जीवन शैली को बनाए रखने के लिए परंपरागत तरीकों का पालन करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। लोग अपने संगठनों और गांव समूहों के साथ मिलकर भगवान की पूजा करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। इसके अलावा, जीवन में खुशहाली और समृद्धि के लिए कुछ विशेष दिनों को भी मनाया जाता है।
भारतीय ग्रामीण जीवन शैली में खाने का स्वाद भी बहुत विशेष होता है। लोग खाने में अपने खेतों से उत्पादित स्थानीय खाद्य पदार्थों को खाना ज्यादा पसंद करते हैं। खाद्य पदार्थ बनाने के लिए स्थानीय मसालों का उपयोग किया जाता है और इससे खाने का स्वाद और आरोग्य दोनों ही सुन्दर होता है।
आज हम इस लेख मे उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश एवम रहन शहन पर चर्चा करेगें।


ग्रामीण रहन शहन 
ग्रामीण रहन-सहन अपनी विशेषताओं और चुनौतियों से भरा होता है। यहां कुछ मुख्य बिंदु हैं:
घर: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग धरती के बने घरों में रहते हैं। घरों का निर्माण जंगली लकड़ी, बांस या मिट्टी के बने होते हैं। घर के आकार और बनाव भी उस स्थान के स्थानीय वातावरण और स्थानीय परंपराओं के अनुसार होते हैं।
खानपान: ग्रामीण खानपान स्थानीय खाद्य पदार्थों पर आधारित होता है। दूध, दही, मक्के की रोटी, दाल, सब्जियां और फल उन्हें स्वस्थ रखने में मदद करते हैं।
खेती: ग्रामीण क्षेत्रों में खेती सबसे अधिक व्यापक उद्योग होता है। खेती के लिए विभिन्न फसलों की खेती की जाती है जैसे- धान, गेंहूं, बाजरा, जौ, मक्का आदि।
परंपरागत संस्कृति: ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरागत संस्कृति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यहां कुछ विशिष्ट संस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जैसे कि त्योहार, संगीत, नृत्य, मेले आदि।
वस्त्र: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग वेशभूषा में भी अपनी परंपरागत विशेषताओं को संजोते हुए हैं। औरतें घरेलू रूप से स्वयं अपने कपड़े बुनती हैं जो उनकी परंपरागत स्थानीय भाषा में "कड़ई" कहलाते हैं। पुरुष धोती और कुर्ता पहनते हैं।
परिवार: ग्रामीण जीवन के मूल तत्वों में से एक परिवार है। ग्रामीण परिवार सदा एकता के साथ रहता है और संबंधों को महत्व देता है। परिवार आपसी सहयोग, संवेदनशीलता और समरसता के लिए जाना जाता है।
गांव के सामाजिक जीवन: गांव के लोग सामाजिक रूप से आपस में जुड़े रहते हैं। वे संगठित समूहों, समाज और समितियों में शामिल होते हैं जो उन्हें सम्मान, संवेदनशीलता और सहयोग प्रदान करते हैं।
ग्रामीण आर्थिक जीवन: ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक जीवन अत्यंत मुश्किल होता है। कुछ लोग अपने खेतों या व्यापार में काम करते हैं। अन्य लोग अपने अस्पतालों, स्कूलों और शहरों में रोजगार् करते है।
ग्रामीण वातावरण
ग्रामीण वातावरण एक सामान्यत: शांत और प्राकृतिक होता है। लोग यहां शांतिपूर्ण और स्वस्थ वातावरण में रहते हैं जो सामान्यतः उन्हें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। ग्रामीण क्षेत्र देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में होते हैं, जहां आबोहवा शुष्क और धूमिल होता है।
यहां वातावरण के कुछ मुख्य तत्व हैं:
जलवायु: ग्रामीण क्षेत्रों में तापमान एकमात्र जलवायु के अनुसार होता है। इसलिए, यहां सर्दियों में ठंडा और गर्मियों में गर्म होता है।
मौसम: ग्रामीण क्षेत्रों में मौसम सामान्यतः स्थिर होता है। यहां बारिश की अधिकता मानसून के दौरान होती है।
भूमि: ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यहां ज्यादातर लोग खेती और पशुपालन से जुड़े होते हैं।
वनस्पति: ग्रामीण क्षेत्रों में वनस्पति की अधिकता होती है। यहां जंगलों में घास, पेड़ और फसलें होती हैं जो लोगों को खाने के लिए काम आती है।
ग्रामीण खान पान
ग्रामीण खान पान कुछ खास होता है और यह उनके जीवन शैली और स्थान के आधार पर विभिन्न होता है। ग्रामीण इलाकों में खाद्य व्यवस्था अलग होती है और यहां की स्थानीय खाद्य पदार्थ खास रुचि के साथ खाए जाते हैं।
ग्रामीण खाद्य व्यवस्था मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के आधार पर होती है। अधिकतर लोग अपने खेतों में उगाई गई फसलें, दालें, अनाज, सब्जियां, फल और तेल के बीज बोते हैं। इसके अलावा, पशुपालन से जुड़े लोग गाय, भेड़ और अन्य पालतू जानवरों के दूध, दही, मक्खन और मांस का उपयोग करते हैं।
ग्रामीण खाद्य व्यवस्था में खाने की परंपराएँ और भोजन बनाने की विधियाँ भी विभिन्न होती हैं। उत्तर भारत में मक्के के रोटी, दाल, सब्जियां और दही का सेवन अधिक होता है। 


ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था
भारत में ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था विभिन्न चुनौतियों का सामना करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए उपलब्ध संसाधनों की कमी होती है, जो शिक्षा के आधार तत्वों को प्रभावित करती हैं।
ग्रामीण शिक्षा ब्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी प्राथमिक विद्यालय होते हैं, जो कम संसाधनों वाले होते हैं। शिक्षकों की कमी, व्यवस्थित शिक्षा सामग्री की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी इन स्कूलों में उपलब्ध संसाधनों की कमी के कारण इस क्षेत्र में शिक्षा के स्तर में कमी आती है।
इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत शिक्षा की अन्य विधाएं होती हैं, जैसे जनसाधारण के लिए अभियानों, संगठनों, ग्राम समूहों और स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित शिक्षा अभियान।
सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए नए योजनाएं लागू की जा रही हैं।

रोजगार एवम ब्यवसाय
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और व्यवसाय के स्रोत विभिन्न होते हैं। कुछ लोग खेती, मछली पालन, चारा पालन, फल और सब्जियों की खेती, गाय-भैंसों की दुग्ध उत्पादन, इत्यादि करते हैं। दूसरे लोग छोटे व्यवसाय जैसे की दुकान, प्रतिष्ठान, ठेकेदारी, बढ़ई-कढ़ाई, इत्यादि करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साथ-साथ उद्यमिता के अवसर भी होते हैं। स्वयं रोजगार के लिए लोग जैविक खेती, पशुपालन, अपने घर में उत्पादित चीजों की बिक्री, आदि शुरू कर सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं।


लेकिन अब ग्रामीण ब्यवस्था आधुनिक बन रही है और इसमें बड़ी बदलाव हो रहे हैं। नए तकनीकी उपकरणों और स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता का स्तर बढ़ाया जा रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं पशुपालन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उद्योग विकास के अवसर हैं। उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज कल विभिन्न प्रकार के उद्योग की स्थापना हो रही है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

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