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रविवार, 6 अगस्त 2023

भवन निर्माण में वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी

 

             वास्तु अनुसार भवन निर्माण 2023


वास्तु अनुसार भवन निर्माण 

                वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तुशास्त्र के अनुसार, भवन के निर्माण में यह महत्वपूर्ण है कि उचित आकार, आरामदायक आकृति और सही दिशा का चयन किया जाए। साथ ही, भवन के अंदर की व्यवस्था, कमरों की स्थानीयकरण, प्रकार, और दरवाजों व खिड़कियों की स्थिति का भी ध्यान देना चाहिए। वास्तुशास्त्र की मदद से भवन की ऊर्जा प्रवृत्ति को भी बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे वातावरण के प्रति सावधानी बढ़ती है।

भवन निर्माण मे वास्तु क्यों जरूरी है
वास्तु भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह निम्नलिखित कारणों के लिए महत्वपूर्ण होता है:


सबसे अच्छे आवास की तरफ: वास्तुशास्त्र भवन की आरामदायकता और प्रक्तिति को सुनिश्चित करने में मदद करता है, जिससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है।
ऊर्जा की सही उपयोग: वास्तुशास्त्र उचित ऊर्जा प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके ऊर्जा के उपयोग को कम करने में मदद करता है और इससे ऊर्जा बचत होती है।
व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता: सही वास्तुशास्त्र के साथ, व्यवसायिक भवन भी व्यवसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाए जा सकते हैं, जिससे कि वित्तीय उपयोगिता भी मिल सकती है।
वातावरण का समर्थन: वास्तुशास्त्र भवन के निर्माण में पर्यावरण के साथ साथ कार्य करता है, जिससे कि पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचे।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: कई लोग वास्तुशास्त्र को धार्मिक और आध्यात्मिक आधारों पर महत्वपूर्ण मानते हैं और उनके अनुसार भवन के निर्माण में वास्तु का पालन करना महत्वपूर्ण होता है।

इन सभी कारणों से, वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी होता है ताकि एक ऊर्जावान, सुरक्षित, और सुखद आवास या व्यवसायिक स्थल बन सके।

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भवन निर्माण वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तु के कुछ प्रमुख सूत्र जिन्हे अपनाकर आप और अपने घर परिवार को स्वस्थ एवं खुशहाल बना सकते हैं:


1.घर की भूमि का ढलान उत्तर व पूर्व में छत की ढलान ईशान में शुभ होती है।


2.घर के भूखंड के उत्तर पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, बोरिंग, कुंवा, तालाब, व बावड़ी शुभ होती है।


3. आयताकार, वृत्ताकार, व गोमुख भूखंड गृह निर्माण के लिए शुभ होता है वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए।


4. सिंह मुखी भूखंड व्यवसायिक भवन हेतु शुभ होता है।
5. भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।


6. भूखंड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिए शुभ होता है।


7. यदि आवासीय परिसर में बेसमेंट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर या पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनाना चाहिए बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट होनी चाहिए तथा वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिए जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।


8. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊंचाई 12 फीट होनी चाहिए किंतु यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिए।


9. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए एवं पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए भवन में दक्षिणी पश्चिमी भाग सबसे ऊंचा व उत्तरी पूर्वी सबसे नीचा होना चाहिए।


10. खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम संख्या में होनी चाहिए।


11. घर के ब्रह्म स्थान या मध्य भाग को खुला साफ तथा हवादार होना चाहिए।


12. चारदीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहिए। क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्त होती है जो शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूर्व से उदय होकर दोपहर में दक्षिण एवं सायं मे पश्चिम की ओर अस्त होता है। पूरब से कम था स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में तथा सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिए। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिए।


13. घर के ईशान कोण में पूजा घर, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेंट बनाना शुभ होता है।


14. घर के पूर्व दिशा में बरामदा, बगीचा, व पूजा घर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जनरेटर, इनवर्टर व मेन  स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य सयन कक्ष, भंडार ग्रह, सीढ़ियां, ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। घर के दक्षिणी पश्चिमी  में शयनकक्ष, भारी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवरहेड, वॉटर टैंक, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाया जा सकते हैं।


15. घर के वायव्य कोण में अतिथि, कुंवारी कन्याओं का सयन कच्छ, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियां अन्य भंडारण व शौचालय शौचालय बनाए जा सकते हैं।


16. घर की उत्तर दिशा में कुआं, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कच्छ, कोषागार व लिविंग रूम बनाए जा सकते हैं।


17. भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा, व गड्ढा अशुभ होते हैं।


18. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए अथवा अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके चाहिए।


19. घर के पूजा स्थान में 7 इंच से बड़ी मूर्तियां स्थापित नहीं करनी चाहिए यदि मूर्ति पहले से है तो उसकी विधि विधान से पूजा करते रहें।


20. घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 सूर्य देव की प्रतिमा, 3 देवी प्रतिमा, 2 गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिए।


21. घर में सभी कार्य पूर्व या उत्तर मुख होकर करना लाभदायक होता है। जैसे- भोजन करना, पढ़ाई करना, धन की तिजोरी का मुख, सोफा, कुर्सी पर बैठने वाले का मुख पूर्व या उत्तर होना चाहिए।


22. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय, रसोई घर का निर्माण नहीं कराना चाहिए। घर में सीढ़ियों की संख्या विषम जैसे 3 5 7 में नहीं होनी चाहिए। एवं घड़ी की दिशा में घुमाव होना चाहिए।


23. भवन के पूर्व की दीवाल पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं बनवाना चाहिए। घर के उत्तर पश्चिम कोने को छोड़कर बाकी तीनों कोणों पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं होनी चाहिए। यह शुभ नहीं होते हैं।


वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह आरामदायकता, ऊर्जा की सही उपयोग, वातावरण संरक्षण, व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता, और धार्मिक महत्व के क्षेत्र में मदद करता है। इससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है और यह व्यापारिक और आध्यात्मिक मानकों को भी पूरा करता है।

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