रक्षाबंधन की तिथि एवं मुहूर्त 2023
![]() |
रक्षाबंधन कब है 2023 |
रक्षाबंधन, हिंदी कैलेंडर के अनुसार, श्रावण मास के पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के दाएं हाथ में राखी बांधती हैं और भाई उन्हें भेंट करके उनकी सुरक्षा और खुशियां की कामना करते हैं। यह परंपरा प्रेम और भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करती है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सम्मान का भाव बढ़ाती है।
रक्षाबंधन का अर्थ होता है "रक्षा" और "बंधन"। इस त्योहार के द्वारा, भाई अपनी बहन के प्रति अपनी प्रेम और समर्पण को प्रकट करता है, और वह अपनी बहन के लिए सभी खतरों से उसकी रक्षा करने का प्रतिबद्ध होता है। साथ ही, बहन भी अपने भाई को आशीर्वाद और प्रेम देती हैं और उन्हें शुभकामनाएं देती हैं। इस सभी भाई-बहन के प्यार और समर्थन से युक्त पर्व के माध्यम से, परिवार का एकात्मता और समरसता का संदेश भी साझा किया जाता है। रक्षाबंधन एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का उत्सव है जो भारतीय समाज में एक लोक प्रिय त्योहार माना जाता है।
राखी बाँधने की बिधि
राखी बांधने की बिधि बहुत सरल है और इसे निम्नलिखित चरणों में पूरा किया जा सकता है:
साफ़ और अच्छी तरह से हाथ धो लें।
राखी को अपने भाई के दाएं हाथ (कलाई) पर बांधने के लिए तैयार करें।
अगर आप चाहें तो राखी को शुभ मुहूर्त में बांध सकते हैं, जो पंचांग या पुराने परंपरागत विधियों के अनुसार निर्धारित होता है।
राखी को अपने भाई के कलाई पर बांधें और ध्यान दें कि राखी का सुरक्षित बंधन हो।
राखी बांधते समय अपने भाई को शुभकामनाएं दें और उसके लिए भविष्य में खुशियों और समृद्धि की कामना करें।
इस विशेष दिन पर, रक्षाबंधन का एक पारंपरिक अंश है कि भाई अपनी बहन को उपहार भी देता है। यह उपहार भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम और आदर का प्रतीक होता है और इसके माध्यम से दोनों के बीच संबंध में और भी गहराई आती है।
रक्षाबंधन की तिथि एवं मुहूर्त 2023
कब है रक्षाबंधन, 30 को या 31 अगस्त को?
इस वर्ष सावन पूर्णिमा तिथि का आरंभ 30 अगस्त 2023 को प्रातः 10 बजकर 59 मिनट से होगा और इसका समापन 31 अगस्त सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर होगा. इस पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा काल का आरंभ भी हो जाएगा. शास्त्रों में भद्रा काल में श्रावणी पर्व मनाना निषेध माना गया है. इस दिन भद्रा काल का समय रात्रि 09 बजकर 02 मिनट तक रहेगा. इसलिए, इस समय के बाद ही राखी बांधना ज्यादा उपयुक्त रहेगा.
रक्षाबंधन का इतिहास
रक्षाबंधन का इतिहास प्राचीन भारतीय समृद्धि से जुड़ा हुआ है और यह त्योहार हिंदी कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा दिवस को मनाया जाता है।
इसका प्रारंभ महाभारत काल से जुड़ा है, जिसमें राजा युधिष्ठिर और द्रौपदी के बीच एक अनूठी घटना घटी थी। युधिष्ठिर को युद्ध में विजयी होने के लिए द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की मदद से एक विशेष रक्षी बांधी थी। इससे उत्तेजित होकर कृष्णा ने द्रौपदी को संतुष्ट करने के लिए उसकी मदद की और इसे "रक्षाबंधन" के रूप में प्रस्तुत किया।
साथ ही, रक्षाबंधन के इतिहास में महत्वपूर्ण रूप से महाराणा प्रताप और रानी कर्णावती के भी योगदान को याद किया जाता है। महाराणा प्रताप के साथी बहन रानी कर्णावती ने रक्षाबंधन के माध्यम से मुगल सम्राट अकबर से मदद मांगी थी जो राजपूतों के लिए एक गहन और धार्मिक बंधन साबित हुआ था।
इस रूप में, रक्षाबंधन भारतीय संस्कृति में बहुत विशेष और महत्वपूर्ण त्योहार बन गया है, जो भाई-बहन के प्यार और सम्मान को दर्शाता है। आज भी यह त्योहार भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और लोग इसे अपने प्रियजनों के साथ खुशियों से मनाते हैं।
इसके अलावा, रक्षाबंधन का अर्थ भाईचारे और सामर्थ्य को बढ़ावा देने वाला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व भी है। यह भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने के साथ-साथ समाज में सौहार्द और एकता का संदेश भी प्रदान करता है।
रक्षाबंधन के दिन बहन राखी बांधने के साथ अपने भाई के लिए विशेष मिठाईयों की भी तैयारी करती हैं। भाई बहन एक-दूसरे के साथ खास वक्त बिताते हैं, खुशियों के पल साझा करते हैं, और एक-दूसरे का साथ समर्थन करते हैं।
इस त्योहार के दौरान बहुत से लोग धार्मिक स्थलों पर जाकर भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और भगवान से अपने प्रियजनों की सुरक्षा और समृद्धि की कामना करते हैं।
इस खास दिन को याद करते हुए, लोग अपने भाई और बहन के साथ अपने जीवन की खुशियों को बांटते हैं और एक-दूसरे के साथ प्रेम और सम्मान के भाव को मजबूत करते हैं। इस रूप में, रक्षाबंधन एक खास पर्व है जो भारतीय संस्कृति में समृद्धि, प्रेम और समागम की भावना को प्रतिबिंबित करता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें