गोबर की खाद विधि एवं प्रयोग
परिचय
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गोबर की खाद विधि एवं प्रयोग |
औपचारिक खेती की शुरुआत से ही प्रयोग की जाने वाली पुरानी खादों में से एक गोबर की खाद है। यह आसानी से उपलब्ध हो जाती है और फसल के पौधों को आवश्यक सभी पोषक तत्व इसमें पाए जाते हैं। यह फसल अवशेष पशुओं के गोबर वा मूत्र के विघटित रूप को प्रतिनिधित्व करता है। यह एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन का मुख्य एवं अवयव है और इसके प्रयोग से पोषक तत्वों के अन्य स्रोत विशेषकर रासायनिक उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ती है। गोबर की खाद के प्रयोग से न केवल भूमि की भौतिक एवं जैविक स्थिति में सुधार होता है बल्कि फसल को आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति भी संतुलित रूप में होती है। इसको बड़ी आसानी से पशुओं के गोबर, मूत्र एवं फसलों व डेयरी के अन्य अनुपयोगी बायो प्रोडक्ट का प्रयोग कर तैयार किया जा सकता है।
गोबर की खाद के विशेष गुण
भूमि लाभकारी जीवों का मुख्य भोजन कार्बनिक पदार्थ होता है जो गोबर की खाद में उच्च अनुपात में पाया जाता है। गोबर की खाद से अल्प मात्रा में नाइट्रोजन सीधे पौधों को प्राप्त होता है और बड़ी मात्रा में खाद सड़ने के साथ-साथ लंबी अवधि तक उपलब्ध होता रहता है। फास्फोरस एवं पोटाश अकार्बनिक स्रोतों की भांति उपलब्ध होते हैं। पोषक तत्वों के संतुलन बनाने में गोमूत्र की अहम भूमिका रहती है। मूत्र के नुकसान को कम कर खाद की गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से पशुओं के नीचे औसतन 3 से 5 किलोग्राम प्रति पशु की दर से बिछावन (फसलों के अवशेष/ भूसा) का प्रयोग किया जाता है। गोबर की खाद में औसतन प्रति टन 5 से 6 किलोग्राम नाइट्रोजन 1.2 से 2 किलोग्राम फास्फोरस और 5 से 6 किलोग्राम पोटाश पाया जाता है। गोबर की खाद की मात्रा और गुणवत्ता मुख्य रूप से जानवरों का प्रकार उम्र और उनको खिलाए जाने वाली सामग्री व तरीका, सामग्री को एकत्र करने व बनाने की विधि पर निर्भर करती है। हालांकि गोबर की खाद भारत में एक आम जैविक खाद्य है परन्तु किसान भाई इसके बनाने की वैज्ञानिक विधि एवं कुशलता पूर्वक इसके उपयोग पर पर्याप्त ध्यान नहीं देते हैं।
गोबर की खाद प्रयोग के लाभ
* मिट्टी की भौतिक, जैविक व रासायनिक गुणों में सुधार कर उर्वरता बढ़ाता है।
* नाइट्रोजन व पोषक तत्वों का प्राकृतिक स्रोत है।
* मिट्टी में ह्यूमैस और धीमी गति से रिलीज होने वाले पोषक तत्वों में वृद्धि करता है।
* भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ाकर पोषक तत्व को बनाए रखना है।
* इससे भारी मिट्टी में हल्कापन एवं बालू मिट्टी में भारीपन के गुण विकसित होते हैं।
* लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ता है।
* सस्य क्रियाओं को संपन्न करने में सुविधा रहती है।
गोबर की खाद तैयार करने की वैज्ञानिक विधि
अधिकतर पशुओं द्वारा गोबर का एक बड़ा भाग उपले बनाने में प्रयोग की जाए किया जाता है। जो सर्वथा गलत है। और पशुओं के लिए बिछी मिट्टी में मूत्र नष्ट हो जाता है। वर्षा के मौसम में उपले ना बनाने के कारण ही गोबर को सड़क किनारे या घरों के पास ढेर लगाकर खाद बनाने का कार्य किसान भाई करते हैं जिससे धूप व वर्षा के कारण पोषक तत्वों का हास हो जाता है और साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है।
गोबर की खाद तैयार करने की तीन प्रमुख विधियां
1 पिट /गड्ढा विधि।
2 ट्रेंच विधि।
3 हिप/ ढेर विधि।
गड्ढा विधि
यह विधि 1000 मिलीo मीटर से कम वर्षा वाले स्थान के लिए उपयुक्त है। वैज्ञानिक विधि से गोबर की खाद तैयार करने के लिए ऐसे ऊंचे स्थल का चयन करें जहां वर्षा का पानी एकत्र होता है। गोबर की खाद हेतु 03 फीट गहरा 6 से 8 फीट चौड़ा एवं आवश्यकता अनुसार लंबाई का गड्ढा खोदना चाहिए चार पशुओं के लिए 75 फीट की लंबाई पर्याप्त रहती है। तेज धूप व वर्षा से बचने हेतु छायादार स्थान व क्षत की भी आवश्यकता होती है। इस विधि में 02 मीटर चौड़ा एवं 01 मीटर गहरा व सुविधा अनुसार लंबाई का गड्ढा खोदा जाता है। जो एक छोर पर ढलान लिए होता है। वर्षा जल के भराव को रोकने के लिए गड्ढे के चारों तरफ मेढ़ बनाई जाती है। तीन से पांच पशुओं के लिए 6 से 7 मीटर लंबा 1 से 1.5 मीटर चौड़ा और 03 फुट गहरा गड्ढा पर्याप्त रहता है। गड्ढे की गहराई एक तरफ 3 फीट और दूसरी तरफ 3:30 फीट होनी चाहिए। प्रत्येक कृषक के पास 2 से 3 गड्ढे होने चाहिए जिससे कि क्रम चलता रहे। पशुओं के गोबर को एकत्र करते समय सावधानी बरतनी चाहिए कि पशुओं का मूत्र नष्ट न होने पाए इसके लिए पशुओं के नीचे खराब भूसा बेकार चार या फसलों के अवशेषों को फैला दिया जाता है। जो पशु मूत्र को सोख लेते हैं इसके लिए धन की पुआल एवं गन्ने की पत्तियां, बाजरे का बबूला आदि उपयुक्त रहते हैं। फसल अवशेषों द्वारा मूत्र सोख लेने से कार्बन और नाइट्रोजन का अनुपात कम हो जाता है और अवशेष जल्दी सड़ जाता है। पक्के फर्श की स्थिति में ढाल बनाकर गड्ढे के मूत्र को एकत्र किया जा सकता है। गड्ढे में भरने के लिए पशुओं के गोबर को उनके मूत्र से भीगे बिछौना में मिलाकर परत दर परत भरते हैं। कम गहरी तरफ से गड्ढा भरना शुरू करना चाहिए। गड्ढे को मूत्र में भीग बिछावन एवं गोबर की परतों से क्रमवार भरना चाहिए। इसी क्रम में गड्ढा भरते भरते भूमि के स्तर से लगभग डेढ़ फीट ऊंचाई तक ढेर लगा सकते हैं। अंत में उसके ऊपर 02 इंच मोटी मिट्टी की परत से ढक देना चाहिए। ऐसा करने से पोषक तत्वों का हास नहीं होगा और खरपतवारों के बीज अच्छी तरह सड़ जाएंगे। गड्ढा भरते समय फसल अवशेष में नमी पर्याप्त होनी चाहिए।
ट्रेंच विधि
इस विधि को डॉक्टर सी एन आचार्य विधि भी कहा जाता है। इसमें डेढ़ से 2 मीटर चौड़ी व 01 से 1.25 मीटर गहरी खाई एवं आवश्यकता अनुसार 6 से 8 मीटर लंबी तैयार की जाती है। खाई में एक छोर से दैनिक रूप से उपलब्ध गोबर व फसल अवशेष/ पशुओं के बिछौना से भरना प्रारंभ करते हैं। भरते भरते जमीन के स्तर से 50 सेंटीमीटर ऊंचा गुंबदनुमा ढेर बनाते हैं। खाई को भरते समय भी गोबर व मूत्र से भीगी कूड़े के मिश्रण को परतों में भरना चाहिए। जमीन से ऊपर उठे गुंबद को रख या मिट्टी से ढककर ऊपर से मिट्टी का लेप से लिपाई कर दिया जाता है। खाई भरने पर दूसरी खाई तैयार की जाती है। प्लास्टर के लगभग 4 से 5 माह बाद खाद तैयार हो जाती है।
हिप ढेर विधि
इस विधि में पशुशाला के ऊंचे स्थान पर दैनिक संग्रह (गोबर/ बिछावन) को एक समान परतों में फैला कर गोल ढेर लगाया जाता है। यह ढेर जमीन से 1 मीटर की ऊंचाई तक लगाते हैं। ऊंचाई पूरी होने पर इस ढेर को गोबर व मिट्टी के मिश्रण से लेपित किया जाता है। लगभग 5 से 6 माह में खाद बनाकर तैयार हो जाती है।
सभी विधियों में पहले शुरू के दिनों में सामग्री वायुविक अवस्था में तथा बाद में अवायुविक अवस्था में सड़ती है। गोबर की खाद बनाने की प्रक्रिया वर्ष से पूर्व शुरू करनी चाहिए। वह वर्ष भर निरंतर चलती रहती है। सही तरीके से कार्य करने पर प्रति पशु 4 से 5 टन सड़ी गोबर की खाद प्राप्त होती है। जबकि परंपरागत कृषक तकनीक से मात्र 1 से 2 टन प्रति पशु प्राप्त होती है। साथ ही कृषक विधि से अनुमानित 30 से 35% नाइट्रोजन व 20 से 25% फास्फोरस और 4 से 6% पोटेशियम का हास सड़ने के दौरान असावधानियों के कारण हो जाता है।
गोबर की खाद की उपयोग विधि
गोबर की खाद में कार्बनिक पदार्थ का उच्च अनुपात होता है। जो मिट्टी के जीव का पोषण करता है। सामान्यत: प्रयोग की जाने वाली गोबर की खाद में उपलब्ध पोशक सामग्री का लगभग आधा भाग प्रथम वर्ष में फसलों को उपलब्ध हो जाता है। शेष पोषक तत्व जैविक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप बाद में फसल को उपलब्ध होते हैं। गोबर की खाद परंपरागत रूप से किसान भाई सूखे खेत में छोटे-छोटे ढेर लगाकर दो से तीन दिन बाद बिखरते हैं। जिससे उसके पोषक तत्व व लाभकारी जीवाणुवो की हानि हो जाती है। इसलिए गोबर की खाद का प्रयोग करते समय खेत में नमी होना बहुत आवश्यक है और ढेरी लगाकर कभी न छोड़ें। फसल बुवाई के 15 से 20 दिन पूर्व खाद को समान रूप से बिखर कर नमी की दशा में मिट्टी में मिलना चाहिए ताकि इसमें आमोनीकरण व नाइट्रोफिकेशन की क्रियाएं पूर्ण हो सके। बिना साड़ी खाद का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए इससे दीमक का प्रकोप बढ़ता है। सामान फसलों में 2 से 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से एवं सब्जी व गन्ने में 5 से 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। नर्सरी एवं फलदार वृक्ष में गोबर की खाद के प्रयोग से अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। गोबर के खाद के साथ सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना उत्तम रहता है।
गोबर की खाद की सीमाएं एवं हानियां
1. गोबर की खाद प्रयोग करने पर इसके अपघटन से हानियां हानिकारक गैसें निकलती है।
2. कुछ सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता प्रभावित होती है।
3. रासायनिक उर्वरकों की तुलना में इसके रखरखाव भंडारण करने में काफी कठिनाइयां आती हैं क्योंकि पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए बहुत बड़ी मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है।