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गुरुवार, 14 सितंबर 2023

धान की खेती-dhan ki kheti

 

                धान की खेती की जानकारी

धान की खेती


धान एक मुख्य खाद्य फसल है और यह दुनिया भर में बहुतायत से उपभोग की जाती है। धान की खेती विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न धान उगाने के पदार्थों के आधार पर की जाती है, जैसे जल, मिट्टी, जलवायु और खेती की व्यवस्था। यहां कुछ मुख्य चरण दिए गए हैं जो धान की खेती में महत्वपूर्ण होते हैं:

जलवायु और भूमि का चयन: धान की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मृदा का चयन करना महत्वपूर्ण है। धान अधिकांशतः उच्च तापमान, प्राय: 25-35 डिग्री सेल्सियस, उच्च आर्द्रता और अच्छी ड्रेनेज वाली मिट्टी में अच्छे से उगता है।

बीज की चुनाव: उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करना धान की उन्नत खेती के लिए महत्वपूर्ण है। प्रमाणित बीज विक्रेताओं से सत्यापित बीज खरीदें और सुनिश्चित करें कि वे वाणिज्यिक पेशेवरता के मानकों को पूरा करते हैं।

आगे की चरणों में धान की खेती शामिल है:

खेत की तैयारी: खेत की तैयारी में शामिल कार्यों में मिट्टी की उचित जुताई, पानी की ब्यवस्था , खेत के ध्यानपूर्वक समायोजन, खेत की सीढ़ियां और खेत की सीमाओं का निर्माण शामिल होता है।

सिंचाई: धान की खेती में समय पर सही मात्रा में सिंचाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल की उचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पानी की उपयोगिता का मूल्यांकन करें और समय-समय पर सिंचाई करें।

खाद और उर्वरक: धान की उचित विकास के लिए उपयुक्त खाद और उर्वरक का उपयोग करें। खेती के लिए संशोधित खाद उपयोग करने से पौधों की वृद्धि में सुधार हो सकता है।

रोगों और कीटों का नियंत्रण: धान की खेती में उचित रोगों और कीटों का नियंत्रण अत्यंत महत्वपूर्ण है। उचित रोगनाशकों और कीटनाशकों का उपयोग करें और नियमित रूप से फसल की स्वास्थ्य सतर्कता करें।

कटाई और फसल उठाई: धान की फसल पर्याप्त पकने के बाद फसल की कटाई करें। सही समय पर कटाई करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर धान को ज्यादा समय तक खुले में छोड़ा जाता है, तो यह तोड़ने और उठाने के दौरान नुकसान पहुंचा सकता है। फसल को ध्यान से काटें और उठाएं और इसे सुरक्षित स्थान पर संग्रहित करें।

संग्रहण और प्रबंधन: धान को सुरक्षित और सुरक्षित स्थान पर संग्रहित करें। धान को सुखाने के लिए इसे धूप में या थोड़ी सम्भावित वायुमंडल के तहत रखें। उचित तापमान और आर्द्रता की निगरानी करें और कीटाणु और कीटों से बचाने के लिए उचित संरक्षण उपाय अपनाएं।

विपणन: धान की खेती के बाद, उसे विपणित करना भी महत्वपूर्ण है। उचित मूल्य पर धान को बिक्री करने के लिए स्थानीय बाजारों या अन्य विपणन माध्यमों का उपयोग करें। उचित गुणवत्ता और प्रबंधन के साथ विपणन करने से आपको अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकता है।

धान की खेती में निम्नलिखित चरण अपनायें
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धान की खेती में ये चरण एक साथ मिलकर एक सफल उत्पादन प्रक्रिया तैयार करते हैं। यह एक नियमित और समर्पित प्रयासों का खेती के साथ योगदान करता है। कुछ अतिरिक्त चरण निम्नलिखित हैं:

पूर्व खेती साझा करें: धान की खेती से पहले अपने क्षेत्र के किसानों और कृषि विशेषज्ञों से पूर्व खेती के बारे में सलाह लें। वे आपको स्थानीय मानदंडों, मौसम पैटर्न और सबसे अच्छे उत्पादन प्रथाओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।

नए तकनीकों का उपयोग करें: धान की खेती में नवीनतम तकनीकों का उपयोग करें। यह बीज उगाने, सिंचाई करने, खेत संरक्षण करने और विपणन करने के लिए एकीकृत और कुशलतापूर्वक प्रयास कर सकता है।

वाणिज्यिकीकरण और मार्केटिंग: धान की खेती को वाणिज्यिकीकृत करना और मार्केटिंग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। कृषि उत्पादों की उचित मूल्यनिर्धारण करें, उच्च गुणवत्ता उत्पादों की विपणन संरचना विकस का अवलोकन करें,
वित्तीय प्रबंधन में सुधार करें और उचित विपणन नेटवर्क विकसित करें। इससे आपको अधिक मार्जिन और उत्पादों की बिक्री में सुधार हो सकता है।

प्रशिक्षण और शिक्षा: खेती के नवीनतम तकनीकों, बेहतर व्यवस्थापन प्रथाओं और गुणवत्ता नियंत्रण की जानकारी प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण और शिक्षा प्राप्त करें। कृषि विशेषज्ञों, सरकारी योजनाओं और कृषि विद्यापीठों के साथ सहयोग लें ।

सहकारी समूहों का गठन: किसान सहकारी समूहों का गठन करें और अपने क्षेत्र के अन्य किसानों के साथ सहयोग करें। इससे आपको खरीदारी, विपणन, वित्तीय सहायता और तकनीकी संचार में लाभ मिल सकता है।

सुरक्षा और प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन:
धान की खेती की जानकारी
प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करें और सतत विकास के लिए संबंधित तत्वों का प्रबंधन करें। जल संरचनाओं का उपयोग करें, मृदा संरक्षण प्रथाएं अपनाएं, और प्राकृतिक संसाधनों के संचालन के लिए संगठित रूप से कार्य करें। जल संरक्षण के लिए बाँधों, तालाबों और सिंचाई प्रणालियों का निर्माण करें। जल संचय के लिए वर्षा पानी को संग्रहित करें और पानी के उपयोग को अनुकूलित करें। संभावित प्राकृतिक आपदाओं के लिए योजना बनाएं और अपनी फसल को संरक्षित रखने के लिए उपाय अपनाएं।
हनन।
सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं: सरकारी किसान कल्याण योजनाओं, सब्सिडी, ऋण योजनाओं और अन्य वित्तीय सहायता की उपलब्धता की जांच करें। अपने क्षेत्र के कृषि विभाग और सरकारी निकायों के साथ संपर्क स्थापित करें और इन योजनाओं का लाभ उठाएं।

अनुकूलन और अनुशासन:
समय पर अनुकूलन और अनुशासन धान की खेती में महत्वपूर्ण हैं। निम्नलिखित चरण ध्यान में रखें:

विशेष उपज की चुनौतियों को समझें: क्षेत्र के अनुकूलन के अनुसार विशेष उपज की चुनौतियों को समझें। बीजों, खाद्य सामग्री, संक्रामक रोगों, कीटों और पारितंत्रिक प्रबंधन के माध्यम से इन चुनौतियों का सामना करें।

नियमित पूर्वानुमान : मौसम के पूर्वानुमान को नियमित रूप से प्राप्त करें और खेती की गतिविधियों को मॉनिटर करें। यह आपको बारिश, तापमान, वायुमंडलीय परिवर्तन और अन्य परिवर्तनों के संकेतों का पता लगाने में मदद करेगा।

फसल संरक्षण: कीटाणु नियंत्रण, रोग प्रबंधन और खेती संरक्षण के उपायों को अपनाएं। पेशेवर सलाह लें और उचित कीटनाशकों, रोगनाशकों और खाद्य सामग्री का उपयोग करें।

उत्पादों का गुणवत्ता नियंत्रण: उत्पादों की गुणवत्ता के लिए गुणवत्ता नियंत्रण नियमित रूप से करें। उच्च गुणवत्ता पूर्ण बीजों, खाद्य सामग्री, सिंचाई, रोपण, पौधरोपण, उगाने, प्रशिक्षण, कीटनाशकों के उपयोग, उत्पाद संस्करण, उत्पादन प्रक्रिया, प्रक्रियाशीलता, औषधीय गुणों की उपस्थिति, और अन्य प्रमुख उत्पाद गुणवत्ता मापदंडों को ध्यान में रखते हुए कार्रवाई करें।

वित्तीय प्रबंधन: धान की खेती में वित्तीय प्रबंधन को महत्व दें। आपके व्यय, आय, ऋण, बचत, और वित्तीय योजनाओं को नियमित रूप से परीक्षण करें। आपके वित्तीय संसाधनों का उचित उपयोग करके, उचित लागत प्रबंधन करके, और आवश्यकतानुसार वित्तीय सहायता का लाभ उठा कर, धान की खेती में सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।

प्रौद्योगिकी का उपयोग: धान की खेती में नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करें। सटीक सिंचाई प्रणाली, स्वचालित खेती के उपकरण, संशोधित बीज, उच्च उत्पादकता वाली मशीनरी, और कृषि अनुमान सॉफ्टवेयर जैसी तकनीकों का उपयोग करें।

रिसर्च और अभियांत्रिकी विकास: खेती के क्षेत्र में अभियांत्रिकी और विज्ञान के विकास पर ध्यान केंद्रित करें। नवीनतम अनुसंधान और विज्ञानिक अद्यतनों को जानें और उन्हें अपनी खेती प्रथाओं में शामिल करें।

स्वास्थ्य और सुरक्षा: खेती के कार्यों में स्वास्थ्य और सुरक्षा को महत्व दें। उच्च गुणवत्ता वाली सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करें और कृषि नियमों, जैव सुरक्षा दिशानिर्देशों, और कानूनी अवधारणाओं का पालन करें।
धान की खेती की जानकारी
स्थायीत्व की बढ़ावा दें: स्थायी खेती के लिए जल संचय, भूमि संरक्षण, जैविक कृषि, एकीकृत कीट प्रबंधन, और उत्पादों की संतुलित विकास को प्रोत्साहित करें। जैविक खाद्य सामग्री का उपयोग करें, और पेशेवरी से प्रक्रियाओं को संचालित करें। विविधता को बढ़ावा दें और प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करें।

निवेश और विकास: खेती में निवेश और विकास को प्रोत्साहित करें। सरकारी योजनाओं, कृषि ऋणों, और वित्तीय संसाधनों का सही उपयोग करें। उच्च गुणवत्ता वाले बी

निष्कर्ष

इस प्रकार, धान की खेती को सफल बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्रवाईयाँ और उपाय हैं। एक सुगम और उ


च्च उत्पादकता वाली धान की खेती के लिए किसानों को नवाचारी तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। सटीक सिंचाई प्रणाली, स्वचालित खेती के उपकरण, और बीजों में संशोधन आदि तकनीकी उपयोग करने से उत्पादकता में सुधार हो सकता है।

साथ ही, किसानों को अनुसंधान संस्थानों, सरकारी निकायों, और संबंधित संगठनों के साथ सक्रिय रहना चाहिए। उनके सहयोग से किसान तकनीकी ज्ञान, सब्सिडी, बाजार जानकारी, और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।

इसके अलावा, खेती के क्षेत्र में अभियांत्रिकी और विज्ञान के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। नवीनतम अनुसंधान और विज्ञानिक अद्यतनों को जानकर किसान अपनी खेती प्रथाओं में शामिल कर सकते हैं।

साथ ही, किसानों को सामाजिक और पर्यावरणीय संबंधित पहलों को भी अपनाना चाहिए। वे स्थानीय समुदायों, संगठनों,

और सरकारी निकायों के साथ मिलकर कृषि विकास के प्रोत्साहन के लिए काम कर सकते हैं। किसानों को विभिन्न किसान शिक्षा कार्यक्रमों, प्रशिक्षण संबंधित कार्यशालाओं, और ग्रामीण उद्यमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

इसके साथ ही, खेती की विपणन रणनीतियों को मजबूत करने के लिए उचित बाजार संगठन को बढ़ावा देना चाहिए। किसानों को उत्पादों की संग्रह और विपणन में सहायता प्रदान करने के लिए कोऑपरेटिव समूहों और उद्यमिता की संरचनाओं के गठन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

अतिरिक्त रूप से, सामग्री संग्रह और खाद्य उत्पादों के लिए प्रकृति संरक्षणीय तरीकों का प्रयोग करना चाहिए। जैविक खेती, स्थायी खेती तंत्र, संरक्षण कृषि, और समुदायिक बीज संग्रह को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जल संरक्षण के लिए धारा-बंदी और सटीक सिंचाई की तकनीकों का उपयोग करना चाहिए।



सोमवार, 21 अगस्त 2023

भारतीय हिंदू आर्ट

 

                       भारतीय हिंदू आर्ट




भारत, जिसे हिन्दुस्तान भी कहा जाता है, एक बहुत ही प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से भरपूर देश है। हिन्दू धर्म, जिसका मूल रूप से भारत से जुड़ा हुआ है, यहां के एक नहीं कई महत्वपूर्ण अंंश है। हिन्दू आर्ट और संस्कृति ने विश्व को अनगिनत कला और दर्शन का दान दिया है।

1. भारतीय कला और मूर्तिकला: हिन्दू आर्ट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मूर्तिकला है। यहां के मंदिर, मूर्तियाँ, और स्थलों की विशेषता हैं। काजीरंगा मंदिर, खजुराहो के मंदिर, और कोणार्क के सूर्य मंदिर इसके उदाहरण हैं।

2. हिन्दी साहित्य और कविता: हिन्दू आर्ट का एक और महत्वपूर्ण पहलू है भारतीय साहित्य और कविता। संस्कृत से लेकर हिन्दी, बंगाली, तमिल, और अन्य भाषाओं में लिखी गई कविताएं और काव्य अद्वितीय हैं।

3. भारतीय संगीत: हिन्दू आर्ट का एक अन्य महत्वपूर्ण हिस्सा है भारतीय संगीत। राग, ताल, और ध्वनि का मेल यहां के संगीत को अनूपचारिकता और गहरापन देता है।

4. योग और आयुर्वेद: हिन्दू आर्ट का एक और महत्वपूर्ण पहलू है योग और आयुर्वेद। योग भारत की एक प्रमुख ध्यान प्रणाली है जो दुनिया भर में प्रचलित है। आयुर्वेद हिन्दुस्तान का प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो स्वास्थ्य और उपचार में प्रशंसा प्राप्त कर रही है।

5. धार्मिक तात्त्विकता: हिन्दू आर्ट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारतीय धर्म है। यह धर्म अनेक धार्मिक प्रथाओं का जन्मस्थान है और यहां के मंदिर और तीर्थस्थल धार्मिक तात्त्विकता का प्रतीक हैं।

6. वस्त्र और फैशन: हिन्दू आर्ट का वस्त्र और फैशन क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान है। भारतीय वस्त्र डिज़ाइन और रंगों का संबंधित और सुंदर उदाहरण है, जो विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।

7. भारतीय जड़ी-बूटियाँ: हिन्दू आर्ट में जड़ी-बूटियाँ भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आयुर्वेद में उपयोग होने वाली जड़ी-बूटियाँ भी हिन्दू संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

8. धार्मिक उत्सव और त्योहार: हिन्दू आर्ट के साथ-साथ भारतीय धर्म के उत्सव और त्योहार भी आते हैं, जैसे दीवाली, होली, और नवरात्रि, जो रंगीनता और धार्मिक अर्थ के साथ मनाए जाते हैं।

9. विविध भाषाएँ और भूगोल: हिन्दू आर्ट की एक खास बात यह है कि यह भारत की विविध भाषाओं और भूगोल के साथ जुड़ी हुई है। भारत में हजारों भाषाएँ बोली जाती हैं, और इन सभी की अपनी विशेष भाषा है।

10. समृद्ध इतिहास और धर्मशास्त्र: हिन्दू आर्ट का इतिहास और धर्मशास्त्र भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन्होंने दर्शन, तात्त्विकता, और धर्मिक अध्ययन में अद्वितीय योगदान किया है।

11. आध्यात्मिकता और योग्यता: हिन्दू आर्ट ने आध्यात्मिकता को महत्वपूर्ण बनाया है और योग्यता के माध्यम से मानव जीवन को सुधारने का मार्ग दिखाया है।

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इन सभी पहलुओं से हिन्दू आर्ट ने भारतीय समृद्धि और सांस्कृतिक विकास में अद्वितीय योगदान किया है और इसे दुनिया की एक अनमोल धरोहर माना जाता है तथा भारतीय सभ्यता को गौरवशाली बनाया है और दुनिया भर में आदर्श के रूप में उभारा है।

धन्यवाद!!

रविवार, 6 अगस्त 2023

भवन निर्माण में वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी

 

             वास्तु अनुसार भवन निर्माण 2023


वास्तु अनुसार भवन निर्माण 

                वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तुशास्त्र के अनुसार, भवन के निर्माण में यह महत्वपूर्ण है कि उचित आकार, आरामदायक आकृति और सही दिशा का चयन किया जाए। साथ ही, भवन के अंदर की व्यवस्था, कमरों की स्थानीयकरण, प्रकार, और दरवाजों व खिड़कियों की स्थिति का भी ध्यान देना चाहिए। वास्तुशास्त्र की मदद से भवन की ऊर्जा प्रवृत्ति को भी बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे वातावरण के प्रति सावधानी बढ़ती है।

भवन निर्माण मे वास्तु क्यों जरूरी है
वास्तु भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह निम्नलिखित कारणों के लिए महत्वपूर्ण होता है:


सबसे अच्छे आवास की तरफ: वास्तुशास्त्र भवन की आरामदायकता और प्रक्तिति को सुनिश्चित करने में मदद करता है, जिससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है।
ऊर्जा की सही उपयोग: वास्तुशास्त्र उचित ऊर्जा प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करके ऊर्जा के उपयोग को कम करने में मदद करता है और इससे ऊर्जा बचत होती है।
व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता: सही वास्तुशास्त्र के साथ, व्यवसायिक भवन भी व्यवसायिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाए जा सकते हैं, जिससे कि वित्तीय उपयोगिता भी मिल सकती है।
वातावरण का समर्थन: वास्तुशास्त्र भवन के निर्माण में पर्यावरण के साथ साथ कार्य करता है, जिससे कि पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचे।
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: कई लोग वास्तुशास्त्र को धार्मिक और आध्यात्मिक आधारों पर महत्वपूर्ण मानते हैं और उनके अनुसार भवन के निर्माण में वास्तु का पालन करना महत्वपूर्ण होता है।

इन सभी कारणों से, वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी होता है ताकि एक ऊर्जावान, सुरक्षित, और सुखद आवास या व्यवसायिक स्थल बन सके।

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भवन निर्माण वास्तु संबंधी आवश्यक जानकारी
वास्तु के कुछ प्रमुख सूत्र जिन्हे अपनाकर आप और अपने घर परिवार को स्वस्थ एवं खुशहाल बना सकते हैं:


1.घर की भूमि का ढलान उत्तर व पूर्व में छत की ढलान ईशान में शुभ होती है।


2.घर के भूखंड के उत्तर पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत, बोरिंग, कुंवा, तालाब, व बावड़ी शुभ होती है।


3. आयताकार, वृत्ताकार, व गोमुख भूखंड गृह निर्माण के लिए शुभ होता है वृत्ताकार भूखंड में निर्माण भी वृत्ताकार ही होना चाहिए।


4. सिंह मुखी भूखंड व्यवसायिक भवन हेतु शुभ होता है।
5. भूखंड का उत्तर या पूर्व या ईशान कोण में विस्तार शुभ होता है।


6. भूखंड के उत्तर या पूर्व में मार्ग शुभ होता है पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम में मार्ग व्यापारिक स्थल के लिए शुभ होता है।


7. यदि आवासीय परिसर में बेसमेंट का निर्माण कराना हो तो उसे उत्तर या पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनाना चाहिए बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम 9 फीट होनी चाहिए तथा वह तल से 3 फीट ऊपर होना चाहिए जिससे उसमें प्रकाश व हवा का निर्बाध रूप से आवागमन हो सके।


8. भवन के प्रत्येक मंजिल के छत की ऊंचाई 12 फीट होनी चाहिए किंतु यह 10 फीट से कम कदापि नहीं होनी चाहिए।


9. भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए एवं पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए भवन में दक्षिणी पश्चिमी भाग सबसे ऊंचा व उत्तरी पूर्वी सबसे नीचा होना चाहिए।


10. खिड़कियां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम संख्या में होनी चाहिए।


11. घर के ब्रह्म स्थान या मध्य भाग को खुला साफ तथा हवादार होना चाहिए।


12. चारदीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में रखना चाहिए। क्योंकि सूर्योदय के समय सूर्य से विटामिन डी की प्राप्त होती है जो शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है। सूरज घड़ी के अनुसार पूर्व से उदय होकर दोपहर में दक्षिण एवं सायं मे पश्चिम की ओर अस्त होता है। पूरब से कम था स्थान उत्तर में, उससे कम स्थान पश्चिम में तथा सबसे कम स्थान दक्षिण में छोड़ना चाहिए। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उससे कम उत्तर में तथा सबसे कम पूर्व दिशा में होनी चाहिए।


13. घर के ईशान कोण में पूजा घर, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम अथवा बेसमेंट बनाना शुभ होता है।


14. घर के पूर्व दिशा में बरामदा, बगीचा, व पूजा घर बनाया जा सकता है। घर के आग्नेय कोण में रसोई घर, बिजली के मीटर, जनरेटर, इनवर्टर व मेन  स्विच लगाया जा सकता है। दक्षिण दिशा में मुख्य सयन कक्ष, भंडार ग्रह, सीढ़ियां, ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं। घर के दक्षिणी पश्चिमी  में शयनकक्ष, भारी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवरहेड, वॉटर टैंक, शौचालय व ऊंचे वृक्ष लगाया जा सकते हैं।


15. घर के वायव्य कोण में अतिथि, कुंवारी कन्याओं का सयन कच्छ, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम, सीढ़ियां अन्य भंडारण व शौचालय शौचालय बनाए जा सकते हैं।


16. घर की उत्तर दिशा में कुआं, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कच्छ, कोषागार व लिविंग रूम बनाए जा सकते हैं।


17. भवन के द्वार के सामने मंदिर, खंभा, व गड्ढा अशुभ होते हैं।


18. सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए अथवा अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके चाहिए।


19. घर के पूजा स्थान में 7 इंच से बड़ी मूर्तियां स्थापित नहीं करनी चाहिए यदि मूर्ति पहले से है तो उसकी विधि विधान से पूजा करते रहें।


20. घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 सूर्य देव की प्रतिमा, 3 देवी प्रतिमा, 2 गोमती चक्र व दो शालिग्राम नहीं रखना चाहिए।


21. घर में सभी कार्य पूर्व या उत्तर मुख होकर करना लाभदायक होता है। जैसे- भोजन करना, पढ़ाई करना, धन की तिजोरी का मुख, सोफा, कुर्सी पर बैठने वाले का मुख पूर्व या उत्तर होना चाहिए।


22. सीढ़ियों के नीचे पूजा घर, शौचालय, रसोई घर का निर्माण नहीं कराना चाहिए। घर में सीढ़ियों की संख्या विषम जैसे 3 5 7 में नहीं होनी चाहिए। एवं घड़ी की दिशा में घुमाव होना चाहिए।


23. भवन के पूर्व की दीवाल पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं बनवाना चाहिए। घर के उत्तर पश्चिम कोने को छोड़कर बाकी तीनों कोणों पर लैट्रिन, बाथरूम नहीं होनी चाहिए। यह शुभ नहीं होते हैं।


वास्तुशास्त्र भवन निर्माण में जरूरी है क्योंकि यह आरामदायकता, ऊर्जा की सही उपयोग, वातावरण संरक्षण, व्यवसाय और वित्तीय उपयोगिता, और धार्मिक महत्व के क्षेत्र में मदद करता है। इससे लोगों का जीवन सुखद और सुरक्षित बनता है और यह व्यापारिक और आध्यात्मिक मानकों को भी पूरा करता है।

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